कबसे तेरे ख्वाब मेरी आंखों में पलते हैं ,
दूर -दूर रहकर भी हम -तुम साथ तो चलते हैं ।
हाथ में हाथ दिए बैठे हैं, देखो दोनों सबसे दूर ,
हैं अंजान के जाडों में दिन जल्दी ढलते है ।
अपना कोई घर ,कमरा या पेड़ नहीं ,
आवारा पंछी रोजाना ठौर बदलते हैं ।
आज अभी तो खुल के जी लें ,कल की कौन कहे ।
सड़क -सड़क पर रोज़ मौत के दस्ते चलते हैं ।
ये हों, वो हों कोई भी हों हमको क्या करना ।
शीश बदलने से क्या तख्तो -ताज बदलते है ।
सीमा
रविवार, 17 मई 2009
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