शनिवार, 2 जनवरी 2010

दोस्तों ,
पहले तो आप सभी को नए साल की बहुत- बहुत मुबारकबाद .
बहुत दिनों से दिल की महफ़िल में आना नहीं हुआ ,दरअसल हम जब दुनियावी परेशानियों में परेशान रहते है तो दिल की महफ़िल आबाद नहीं हो पाती है .इस नए साल में कोशिश रहेगी की आप सभी से लगातार मुलाक़ात होती रहे .इसी सिलसिले में एक ताज़ा ग़ज़ल पेश है .अपने कमेन्ट जरूर दें और कमियों को भी बताएं ताकि शायरी में और निखर सके



मेरा नहीं हुआ वो ,ये ग़म नहीं है मुझको
अफ़सोस ये के अब वो ,किसी का ना हो सकेगा

सब रंज ग़म भुलाकर ,उसको गले लगाकर
रोया हूँ आज जितना ,कोई और रो सकेगा ?

जाने कितने ग़म मिले हैं ,मुझको हंसी के बदले
मैं क्या करूँ के मुझसे रोना ना हो सकेगा

मैली ही क्यों करें अब ,चादर कबीर की हम
जब जानते हैं हमसे ,धोना ना हो सकेगा

पाया है जबसे तुझको ,तुझमें ही खो गया हूँ
अब और कुछ भी पाना ,खोना ना हो सकेगा

सीमा