शनिवार, 2 जनवरी 2010

दोस्तों ,
पहले तो आप सभी को नए साल की बहुत- बहुत मुबारकबाद .
बहुत दिनों से दिल की महफ़िल में आना नहीं हुआ ,दरअसल हम जब दुनियावी परेशानियों में परेशान रहते है तो दिल की महफ़िल आबाद नहीं हो पाती है .इस नए साल में कोशिश रहेगी की आप सभी से लगातार मुलाक़ात होती रहे .इसी सिलसिले में एक ताज़ा ग़ज़ल पेश है .अपने कमेन्ट जरूर दें और कमियों को भी बताएं ताकि शायरी में और निखर सके



मेरा नहीं हुआ वो ,ये ग़म नहीं है मुझको
अफ़सोस ये के अब वो ,किसी का ना हो सकेगा

सब रंज ग़म भुलाकर ,उसको गले लगाकर
रोया हूँ आज जितना ,कोई और रो सकेगा ?

जाने कितने ग़म मिले हैं ,मुझको हंसी के बदले
मैं क्या करूँ के मुझसे रोना ना हो सकेगा

मैली ही क्यों करें अब ,चादर कबीर की हम
जब जानते हैं हमसे ,धोना ना हो सकेगा

पाया है जबसे तुझको ,तुझमें ही खो गया हूँ
अब और कुछ भी पाना ,खोना ना हो सकेगा

सीमा

14 टिप्‍पणियां:

  1. वो बहुत ही पहले सुना था...कि दिल से जो बात निकलती है असर रखती है...आज आपकी नयी रचना में एक बार फिर ये बात हकीकत में ढलती हुयी देख ली....नया साल आपकी प्रतिभा को पूरी दुनिया में रोशन करे...!

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  2. सुन्दर गज़ल, नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.

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  3. मैली ही क्यों करें अब,चादर कबीर की हम

    बहुत अच्छा है

    स्वागत !
    लेखन की हथकडी़ को और धारदार बनाती चलें

    कृ्पया शब्द पुष्टिकरण हटालें ताकी टिप्प्णी करने में आसानी हो जाये

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  4. good nazm...welcome in blog world...keep it up....and continue your writing

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  5. बढ़िया शुरूआत है.....नये साल की हार्दिक बधाई।

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  6. बहुत बढ़िया ...नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.

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  7. पाया है जबसे तुझको ,तुझमें ही खो गया हूँ
    अब और कुछ भी पाना ,खोना ना हो सकेगा ।

    बहुत खूब सीमा जी...भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई...
    नीरज

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  8. मैली ही क्यों करें अब ,चादर कबीर की हम
    जब जानते हैं हमसे ,धोना ना हो सकेगा ।

    gzl mei bahut pate ki baat
    kahi hai aapne...
    har sher apni baat keh rahaa hai.
    badhaaee .

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  9. bahut khoob.badhaai ho.

    aap thoda color font color ka sahi upyog kare jise pdhne me asani ho.

    www.sometimesinmyheart.blogspot.com

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  10. आपके इस ब्लॉग पर शायद पहली बार आया हूँ. आने वाले नए साल में कुछ नयी पंक्तियाँ पढने को मिले.
    कम से कम शायरी का दौर जारी रहे.

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  11. बहुत खूब - सार्थक ग़ज़ल - नव वर्ष की मंगल कामना
    विशेष:
    "मैली ही क्यों करें अब,चादर कबीर की हम
    जब जानते हैं हमसे, धोना ना हो सकेगा"

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  12. मैली ही क्यों करें अब ,चादर कबीर की हम
    जब जानते हैं हमसे ,धोना ना हो सकेगा ।

    पाया है जबसे तुझको ,तुझमें ही खो गया हूँ
    अब और कुछ भी पाना ,खोना ना हो सकेगा ।

    waah waah bahut khoob
    behtareen likha hai aapne
    bahut achha laga
    badhaayi
    aabhaar

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