सबसे पहले तो आप सब से माफ़ी चाहती हूँ के बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं डाली और उसके बाद आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया के आप लोग इस दिल की महफ़िल में आये और अपने बेशकीमती कमेंट्स से मेरी हौसला अफजाई की .मुआफिनामे के तौर पर एक ताज़ा ग़ज़ल पेश है .
शाम लौटी है थके हाल परिंदों की तरह .
निचली बस्ती के नाकाम बाशिंदों की तरह .
काट के पर मेरे ,हाय उस ज़ालिम ने कहा .
ख़ुदा करे कि उड़ें आप परिंदों की तरह .
ना काफी रही बारिश ,हैं सूखी हुई फसलें .
बादल भी अबके आये सरकारी कारिंदों की तरह .
ये बेलगाम हाकिम ,ये लुटेरे रहनुमा ?
चूसेंगे हमको कब तक ,ये लोग दरिंदों की तरह .
मयखाना मुबारक तुम्हें ,साकी भी तुम्हीं को
हमको तो नशा दे गई है ,ज़िन्दगी रिन्दों की तरह .
तू ख़ुदा है ? तो ख़ुदा आज उतर जन्नत से
ज़मीं पे रह के दिखा तू जरा बन्दों की तरह
ना काफी रही बारिश ,हैं सूखी हुई फसलें .
जवाब देंहटाएंबादल भी अबके आये सरकारी कारिंदों की तरह .
वाह...वा...बहुत खूब...देर आयीं दुरुस्त आयीं...
नीरज
मुझे तो ये शेर बहुत प्यारा लगा:-
जवाब देंहटाएंकाट के पर मेरे ,हाय उस ज़ालिम ने कहा .
ख़ुदा करे कि उड़ें आप परिंदों की तरह .
vah vah.
कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
जवाब देंहटाएंकुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
आशा है की आगे भी मुझे असे ही नई पोस्ट पढने को मिलेंगी
आपका ब्लॉग पसंद आया...इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!
शाम लौटी है थके हाल परिंदों की तरह .
हटाएंनिचली बस्ती के नाकाम बाशिंदों की तरह ...bahut sundar..
touching words yar
जवाब देंहटाएंKar kar par mere,