रविवार, 15 फ़रवरी 2009

रात यूँ दिल में तेरी खोई हुई याद आई
जैसे वीराने में चुपके से बहार जाए
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद- - नसीम
जैसे बीमार को बेवजह करार जाए

फैज़

2 टिप्‍पणियां:

  1. फैज़ साहब का उम्दा शेर पढ़ कर
    ज़हन में कई भूली-बीती यादों की दस्तक महसूस हुई ...
    आपके ब्लॉग पर आना कारगर साबित हुआ ....

    और.... फैज़ साहब का ही कलाम याद आता है . . . . .
    "बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल गरीब सही ,
    तुम्हारे नाम से आयेंगे गम-गुसार चले ..."

    शुक्रिया और मुबारकबाद ..........
    ---मुफलिस---

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  2. aisa kaise ho sakata hai ki muflis sir koi blog follow karein aur unka shishya nahi?
    so here i am....
    ,,,and following this blog is worth while,,,

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