शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

कुछ बाकी रहा छिपाने को
सब पता चल गया ज़माने को |

जिसको दिल से लगा के रक्खा है
,
वो तड़पता है दूर जाने को |

रोज़ रो -रो के थक गई ऑंखें ,
मिले मुझे भी कोई शाम खिलखिलाने को |

रात हो ,नींद हो और ऐसा हो ,
कोई
आए नही जगाने को |

खुशबु ही बस नहीं है ,इन कागजी फूलों में
वैसे अच्छे हैं ,गुलदान में सजाने को |

दिल तो दिल है ,कोई पहाड़ नहीं
एक खिलौना है टूट जाने को |

सीमा

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक खूबसूरत अभिव्यक्ति .....
    शुभकामनाएं .....

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  2. खुशबु ही बस नहीं है ,इन कागजी फूलों में
    वैसे अच्छे हैं ,गुलदान में सजाने को |

    bahut khoob.badhaai ho.

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  3. bahut khoob.badhaai ho.

    aap thoda color font color ka sahi upyog kare jise pdhne me asani ho.

    www.sometimesinmyheart.blogspot.com

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