शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
खवाब -बसेरा
इस वक्त तो यूँ लगता है अब कुछ भी नहीं है महताब ,न सूरज ,न अँधेरा न सवेरा आँखों के दरीचों में किसी हुस्न की झलकन और दिल की पनाहों में किसी दर्द का डेरा मुमकिन है कोई वहम हो ,मुमकिन है सुना हो गलियों में किसी चाप का अक आखिरी फेरा शाखों में ख्यालों के घने पेड़ की शायद अब आके करेगा न कोई खवाब बसेरा इक बैर,न इक महर न इक रब्त ,न रिश्ता तिरा कोई अपना,न पराया कोई मेरा मन की ये सुनसान घडी सख्त बड़ी है लेकिन मेरे दिल ये तो फ़क़त एक घड़ी है हिम्मत करो जीने को अभी उमर पड़ी है .
फैज़ अहमद 'फैज़'
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सख्त बड़ी है लेकिन मेरे दिल ये तो फ़क़त एक घड़ी है हिम्मत करो जीने को अभी उमर पड़ी है .
जवाब देंहटाएंfaij to dil ke kareeb hain ..sundar
faiz sahab ke kalaam ke ek-ek
जवाब देंहटाएंlafz ko salaam . . . .
aapko abhivaadan . . .
---MUFLIS---