गुरुवार, 5 मार्च 2009

यही हालात इब्तिदा से रहे
लोग हमसे खफा -खफा से रहे |

बेवफा तुम कभी थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफा से रहे |

इन चरागों में तेल ही कम था
क्यों गिला फ़िर हमें हवा से रहे |

उसके बन्दों को देख कर कहिये
हमको उम्मीद क्या खुदा से रहे

जिंदगी की शराब मांगते हो
हम को देखो के पी के प्यासे रहे |


जावेद जाँ निसार 'अख्तर '

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी स्वाद कोशिकाएं मुझसे मिलती जुलती सी है, उम्दा ग़ज़ल !

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  2. जिंदगी की शराब मांगते हो
    हम को देखो के पी के प्यासे रहे |
    शानदार गजल लिखी है आपने । गजल का हर मतला अपने आप में बेमिसाल है । खासकर आम जिन्दगी की बारीक पहलुओ को अच्छे ढ़ंग से ये गजल महसूस कराता है । आपको आभार

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  3. आपने बहुत ही अच्छी गजल लिखी है

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  4. बहुत ही मार्मिक गजल है, ऐसा लगता है की आपने इस दर्द को जिया है और गम के आंसुओ को पिया है. बहुत अच्छा प्रयास.

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