रविवार, 8 मार्च 2009

एक लम्हा जाते -जाते कान में ये कह गया
अब लौटेगा वो आंसू ,आंख से जो बह गया

कुछ तो माजी से मिले हैं और कुछ ताजे भी हैं
और भी एक ज़ख्म है जो भरते-भरते रह गया

गुनगुनाने के लिए छेड़ी जो मैंने एक ग़ज़ल
क्यूँ किसी की आंख से सारा समंदर बह गया

बुनियाद पक्की चाहिए ईमारत --बुलंद को
एक मकां जो ताश का था बस हवा से ढह गया

वक्त की इस धूप ने मुझको बनाया सख्त जाँ
चोट गहरी थी मगर मैं मुस्कुरा के सह गया

सीमा

10 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ तो माजी से मिले हैं और कुछ ताजे भी हैं
    और भी एक ज़ख्म है जो भरते-भरते रह गया ।

    सिर्फ इस शेर पर ही नहीं हर शेर पर दाद

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  2. रंगों के त्योहार होली पर आपको एवं आपके समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ

    ---
    चाँद, बादल और शाम
    गुलाबी कोंपलें

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  3. सीमा जी क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने...हर शेर कमाल का कहा है...बहुत बहुत बधाई...बहुत आनंद आया आप को पढ़ कर...
    नीरज

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  4. क्षमा करें भूल हुई...होली की शुभकामनाएं देने को तो रह ही गयीं...आप की ग़ज़ल में ऐसा खोया की भूल ही गया....होली ढेरों रंगीन शुभकामनाएं....
    नीरज

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  5. seema ji

    main nahi jaanta tha ,ki aap itni achi gazal bhi likhti ho , jai ho aapki , ab mujhe to gazal likhna nahi aata , der saari badhai ho
    वक्त की इस धूप ने मुझको बनाया सख्त जाँ
    चोट गहरी थी मगर मैं मुस्कुरा के सह गया
    mujhe sabse jyaada ye pasand aaya ji ..
    wah ji wah
    vijay

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  6. "gun.gunaane ke liye chhdi jo maine ik gazal
    kyu kisi ki aankh se sara samundar beh gya.."

    waah ! waah !!
    lajwaab gazal....har sher mei ek alag hi
    lutf....baan`gi be-misaal....
    mubarakbaad . . . . .
    ---MUFLIS---

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  7. वाहवा... क्या बात है... सीमा जी, बधाई स्वीकारें..

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  8. एक लम्हा जाते -जाते कान में ये कह गया
    अब न लौटेगा वो आंसू ,आंख से जो बह गया ।

    गुनगुनाने के लिए छेड़ी जो मैंने एक ग़ज़ल
    क्यूँ किसी की आंख से सारा समंदर बह गया ।

    बुनियाद पक्की चाहिए ईमारत -ऐ-बुलंद को
    एक मकां जो ताश का था बस हवा से ढह गया ।


    बहुत प्यारे शेर कहे हैं आपने, बधाई।

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  9. हम्म्म्म अच्छी बन पड़ी है....हूँ.....इसका मतलब है कि पुलिस नाम की भी ऐसी कोई जीव है जिसमें ना सिर्फ शब्द....बल्कि संवेदना भी होती है.....!!

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